मालवा (मराठा साम्राज्य) की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर की अनसुनी कहानी डॉ हर्ष प्रभा की ज़ुबानी

कहते हैं कि जिनके पास इतिहास लिखने का समय नहीं होता, वही इतिहास बनाते हैं! ऐसा ही इतिहास एक साधारण सी बच्ची ने,अपने संस्कारों से बचपन में ही बनाना शुरू कर दिया था!मात्र 8 वर्ष की उम्र में शिव शंकर की भक्त, मंदिर के बाहर जरूरतमंद लोगों को खाना खिला रही थी, वह कोई और नहीं साधारण सी कन्या अहिल्याबाई थी! इस कन्या पर मल्हार राव जोकि पुणे जा रहे थे,उनकी नजर पड़ी, ऐसी संस्कारी कन्या को देखकर उन्होंने तुरंत फैसला कर लिया था, कि वह उन्हें अपनी पुत्रवधु के रूप में देखना चाहेंगे!और उन्होंने अपने बेटे खंडेराव से देवी अहिल्याबाई होल्कर की शादी करा थी,मात्र 8 वर्ष की उम्र में!

शादी के बाद देवी अहिल्याबाई होलकर बन गई थी मालवा साम्राज्य की महारानी! लेकिन होनी को कौन टाल सकता है, मात्र 21 वर्ष की उम्र में वह विधवा हो गई थी, लेकिन उन्होंने कभी भी जीवन इन सब चुनौतियों को खुद पर हावी नहीं होने दिया! और उन्होंने बड़ी ही समझदारी के साथ मालवा साम्राज्य को संभालने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी! वह एक ऐसी रानी थी जो राज्य और जनता में कोई फर्क नहीं करती थी! और यही बात उनकी एक अद्भुत मिसाल बन गई जो आज भी सुनहरे अक्षरों में लिखी हुई है!

एक बार की बात है जब उनका बेटा खंडेराव अपना रथ लेकर इंदौर की सड़क से गुजरा, तो वहां उनके रथ ने,एक गाय जो अपने बछड़े के साथ बैठी हुई थी, इस बछड़े को इतनी जोर से टक्कर मारी, कि वह बछड़ा वही मर गया! और यह देखकर गाय बछड़े से लिपट कर उदास वहीं बैठी रही और जोर जोर से रंभाने लगी!थोड़ी देर बाद इंदौर की उसी सड़क से महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर का रथ निकला! देवी अहिल्याबाई होल्कर ने देखा कि एक गाय अपने बछड़े से लिपट कर जोर जोर से रंभा रही थी,और बछड़ा मरा हुआ जमीन पर पड़ा था!

यह देखकर देवी अहिल्याबाई होलकर को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने पूछा कि इस बछड़े की जान किसने ली है!तब उनको पता चला कि उस बछड़े की जान तो उनके अपने बेटे खंडेराव ने ली थी! वह गुस्से में महल में आई और उन्होंने अपनी पुत्र वधू से पूछा कि अगर एक मां के सामने उसके बेटे की हत्या कर दी जाए, तो अपराधी को क्या सजा मिलनी चाहिए, यह बात सुनकर उनकी पुत्रवधू ने कहा कि मृत्यु की सजा ही अपराधी की सही सजा होगी!

देवी अहिल्याबाई होल्कर ने सैनिकों को आदेश दे दिया, कि खंडेराव को बांधकर इंदौर के उसी चौराहे पर छोड़ दिया जाए और रथ में सवार होकर जिस तरह से खंडेराव ने गाय के बछड़े की जान ली है, उसी तरह से खंडेराव की जान ले ली जाए! ऐसा सुनकर कोई भी रथ का सारथी बनने के लिए तैयार नहीं हुआ, सबने देवी अहिल्याबाई होलकर को समझाया, कि खंडेराव को माफ कर दिया जाए!लेकिन देवी अहिल्याबाई होलकर टस से मस नहीं हुई! जब कोई भी उस रथ का सारथी बनने के लिए तैयार नहीं हुआ, तब खुद देवी अहिल्याबाई होलकर उस रथ की सारथी बन गई,और उन्होंने खुद एक मां होकर अपने पुत्र खंडेराव को दंड देने का निश्चय कर लिया! और जैसे ही उन्होंने रथ की कमान संभाली और रथ को खंडेराव पर चढ़ाने के लिए आगे बढ़ाया,तभी वही गाय देवी अहिल्याबाई होल्कर के रथ के आड़े आ गई, बार बार गाय को हटाने के बाद भी गाय बार-बार रथ के आड़े आ रही थी! यह सब देख कर सब कहने लगे कि माता खंडेराव को क्षमादान दे दो,यह गौमाता भी यही चाहती हैं, कि किसी और के पुत्र की मृत्यु उसकी मां की आंखों के सामने ना हो,जैसे गौ माता के बछड़े की मृत्यु उसकी आंखों के सामने हो गई थी! बार-बार गाय के आड़े आने से और सब के समझाने से देवी अहिल्याबाई होल्कर ने खंडेराव को माफ कर दिया था! कहते हैं कि इसी कारण इंदौर के उस बाजार का नाम, गाय के बार बार आड़े आने आड़ा बाजार पड़ा! तो ऐसी थी देवी अहिल्याबाई होल्कर जो राज्य और प्रजा में कोई फर्क नहीं समझती थी,न्याय सबके लिए बराबर था! ऐसी न्याय प्रिय महारानी को हम सब कोटि कोटि नमन करते हैं!

आज विश्व पशु दिवस है,तो हमें देवी अहिल्याबाई होल्कर की इस कहानी से भी पता चलता है, कि वह भी कितनी बड़ी पशु प्रेमी थी, क्योंकि वह जानती थी कि अगर पशु है, तो प्रकृति है, और प्रकृति है, तो हम हैं, और हम सब हैं, तो यह पृथ्वी है, और पृथ्वी पर सब बैलेंस है तो हम सब सुरक्षित है!

लेखिका डॉ हर्ष प्रभा
उत्तर प्रदेश
समाज सेविका पर्यावरणविद एवं लेखिका डॉ हर्ष प्रभा
गुडविल एंबेसडर विवेकानंद वर्ल्ड पीस फाउंडेशन
मातृ मंडल सेवा भारती

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