कृष्ण जी का ह्रदय आज भी जगन्नाथपुरी मंदिर की मूर्ति में धड़कता है! ऐसे क्यो? डॉ हर्ष प्रभा
एक बार शिव जी भिखारी का रूप बनाकर रुक्मणी और श्री कृष्ण जी की परीक्षा लेने आ गए थे धरती पर,लेकिन कृष्ण जी तो कृष्ण जी हैं,उन्होंने शिवजी को पहचान लिया था,कि वह परीक्षा लेने के लिए ही आए हैं, इसीलिए उन्होंने रुकमणी से कहा कि इनकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए! हालांकि रुक्मणी और कृष्ण भगवान जी किसी भी भिक्षुक को खाली हाथ नहीं भेजते थे, और यह तो साक्षात शिव भगवान थे,तो इनको कैसे बिना सेवा किए भेज सकते थे वापस कैलाश पर!
इधर शिव भगवान जी इन दोनों की परीक्षा लेने के लिए पूरी तरह से तैयारी करके आए थे! रुक्मणी ने छप्पन भोग बनाएं, और भिखारी के वेश में आए शिव जी को जिमने के लिए बिठाया! शिव जी सभी पकवान खा चुके थे,लेकिन उनकी जरा भी भूख नहीं मिटी! कृष्ण भगवान जी ने रुकमणी को फिर से आदेश दिया कि कोई भी कमी खाने में नहीं होनी चाहिए,यह तुम्हारी जिम्मेदारी है,कि किस तरह से जो मेहमान घर पर आया है, उसको संतुष्ट किया जाए भरपेट खाना खिला कर! इधर रुक्मणी ने भी अपने सभी सखियों के साथ मिलकर खाने की पूरी व्यवस्था संभाल रखी थी, लेकिन इधर शिव भगवान जी का पेट जरा भी नहीं भरा, इतने हजारों पकवान खाने के बाद भी!
अब रुकमणी को गुस्सा आने लगा था और वह कृष्ण जी से कहने लगी, कि यह और कितना खाना खाएंगे, क्योंकि रुकमणी नहीं जानती थी कि वह कोई और नहीं भिखारी के वेश में शिव थे,जो दोनों की परीक्षा लेने के लिए ही आए थे कैलाश पर्वत से! श्री कृष्ण भगवान जी समझ गए थे, कि अब शिव शंकर की भूख शांत करने के लिए एक ही उपाय है,और वह है शिव शंकर को सबसे प्रिय खीर, श्री कृष्ण भगवान जी ने रुक्मणी को आदेश दिया कि खीर बनाई जाए! रुकमणी में स्वादिष्ट खीर बनाई और अब खुद श्री कृष्ण जी अपने हाथों से भिखारी के वेश में आए हुए शिव जी को खीर परोसने लगे थे!
लेकिन शिव जी ने यह क्या किया थोडी सी खीर चख कर, खीर का पूरा भगोना कृष्ण जी के ऊपर गिरा दिया और कहा कि जाओ यही तुम्हारे लिए आशीर्वाद है! पूरे शरीर पर इस प्रसाद को मल लो!श्री कृष्ण भगवान जी सब समझ रहे थे की शिव जी किस तरह से उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं, यह कोई खीर नहीं चमत्कारिक रक्षा कवच था!
श्री कृष्ण भगवान जी ने खीर को अपने पूरे शरीर पर लगा लिया,लेकिन पैरों के नीचे नहीं लगाई, शिव शंकर ने फिर से कृष्ण जी को याद दिलाया, कि तुमने पैरों के नीचे की जगह छोड़ दी है! इस पर श्री कृष्ण जी ने शिवजी से कहा कि मैं प्रसाद की गरिमा जानता हूं,इसीलिए मैं इस प्रसाद को पैरों के नीचे नहीं लगाऊंगा! शिवजी के बार-बार आग्रह करने पर भी श्री कृष्ण जी ने खीर के प्रसाद को अपने पैरों के नीचे तलवों पर नहीं लगाया!
बस आगे की बात तो आप सभी जानते हैं कि श्री कृष्ण जी को तीर कहां लगा था, पैरों के तलवों के नीचे ही, जहां पर उन्होंने खीर का लेप नहीं लगाया था,वही हिस्सा उनके शरीर का सबसे कमजोर हिस्सा था,और उस तीर ने कृष्ण जी की जान ले ली थी!
जब श्री कृष्ण जी का अंतिम संस्कार करने के लिए पांचो पांडव आए तब उन्होंने श्री कृष्ण जी के मृत शरीर को अग्नि दी, लेकिन उनके शरीर का एक हिस्सा उनका ह्रदय नहीं जला, वह ऐसे ही धड़कता रहा! फिर पांच पांडवों ने उनके इस हृदय को नदी में प्रवाहित कर दिया था! जो बहता बहता जगन्नाथ पुरी पहुंच चुका था! श्री कृष्ण जी का यह ह्रदय एक लठ का रूप ले चुका था,जो नदी में तैरता हुआ जा रहा था! श्री कृष्ण जी के सबसे प्रिय भक्त इंद्रप्रद्युम को सपने में नदी में तैरता हुआ यह लठ दिखाई दिया,श्री कृष्ण जी के इस प्रिय भक्तों ने इस लठ को नदी से निकाल कर जगन्नाथपुरी में जो मूर्ति हैं उस मूर्ति में लगा दिया था! जो कि आज भी जगन्नाथ पुरी की मूर्ति में लगा हुआ है!
यही कारण है कि आज भी जगन्नाथ पुरी की उन मूर्तियों में साक्षात कृष्ण भगवान जी का हृदय धड़कता है!इसलिए कहते हैं ना कि ईश्वर इसी धरती पर साक्षात हमें दर्शन देने के लिए रहते हैं,बस वह तरीका उनका खुद का ही होता है,कि वह किस रूप में भक्तों को दर्शन देंगे! और भक्तों का काम होता है कि भगवान के इशारे को समझना,श्री कृष्ण भगवान जी ने एक मनुष्य के रूप में जन्म लिया था, इसलिए मृत्यु भी निश्चित थी,लेकिन वह एक ईश्वर भी थे,इसलिए वह आज भी इस धरती पर कलयुग में भी मौजूद हैं!
लेखिका डॉ हर्ष प्रभा
उत्तर प्रदेश
समाज सेविका पर्यावरणविद एवं लेखिका डॉ हर्ष प्रभा गुडविल एम्बेसडर विवेकानंद वर्ल्ड पीस फाउंडेशन
मातृ मंडल सेवा भारती